अज्ञानी भक्त की पुकार

मैं अज्ञानी,भवसागर में भटक रहा हूं,
मोह,लोभ,अहंकार में लिपट रहा हूं।
मन,बुद्धि,चित्त मेरा खो रहा हैं,
स्थिरता का बीज प्रभू, मैं खोज रहा हूं।।

निज कर्म को मैं समझ ना पाया ,
कर्म के मोह को त्याग ना पाया।
तू ही प्रभु अब पथ प्रदान कर,
बस तेरे नाम में सुख पाया।।

मैं आसक्ति में भ्रमित सा रहता हूं,
काम के बंधन में बंधा सा रहता हूं।
अपूर्ण कामनाओं से क्रोधित हो जाता हूं,
क्रोध की अग्नि में जलता रह जाता हूं।।

ये सांख्ययोग,ये कर्मयोग मेरी समझ ना आएं,
कलयुग का मनुष्य हूं,मुझे तेरा ध्यान ना आए
प्रभु तेरी भक्ति में मुझे मग्न कर दे,
जीवन की सार्थकता से संलग्न कर दे।।

- अर्शिता शर्मा ‘कौशिकी'

Comments

Popular Posts