मैं तो एक मुसाफिर हूँ

 

मैं तो एक मुसाफिर सी दिखाई पड़ती हूं
कभी इस छोर तो कभी उस छोर
तन नहीं मन से सैर मैं किया करती हूं
सैर कर सुंदरता मन में भर लिया करती हूं

मुसाफिर हूँ मोह में नहीं पड़ती
संस्कारों की छाया में सबसे मिला करती हूं
क्षण भर में परिवर्तित खुदको मैं पाया करती हूं
मैं मुसाफिर हूं नई नई राहों में चली जाया करती हूं

मन में कई विचार लिए खुशी से झूम मैं पड़ती हूँ
दिल पर कई घाव लिए मुस्कान में खूब ढलती हूँ
आखिर,मैं एक खिलखिलायी हुई मुसाफिर हूँ
उत्साह, सदा झोली में लिए बिखेरती फिरती हूँ

एक प्रेरक की खोज में घूमा मैं करती हूँ
सुने मन की बात मेरी ये आस लिए फिरती हूँ
कब दूर हो जाती हूँ उनसे, असमंजस में ये सोचती हूँ
क्या करूँ मुसाफिर हूँ ठहर मैं नहीं पाती हूँ

हूँ बहुत भावुक मैं
सदा करुणा लिए बेहती हूँ
दुख से भरे राहगीरों को देख
अश्रु लिए फिरती हूँ

अपनों से बिछड़ते भयाकांत हुआ करती हूँ
अपनों की परवाह लिए घूमा मैं करती हूँ
अपनों के त्याग में परिपक्व हुई दिखती हूँ
मुसाफिर हूं फिर भी अपनों की परवाह लिए फिरती हूँ


-अर्शिता

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