उस मासूम को बचा लो

नम आँखों समेत एक कोने में छुप गया,
प्रश्नों के तूफानों संग उस क्षण को झेल गया।
मात-पिता के अहं की घनिष्ठ लड़ाई में ,
एक मासूम हृदय असहज सहम गया।।

आज उसने कुछ ऐसा देखा जो पहले  न देखा था,
कुछ ऐसा अनुभव किया जो पहले कभी न किया था।
उसके समक्ष हो रही महाभारत को वो कैसे समझे,
क्या मन में चलेगा उसके उसे किसने समझा था।।

माता पिता की हठ के बीच उस मासूम को बचा लो,
गेंहू संग पिस रहे घुन को कोई तो निकाल लो।
क्रोध की अग्नि को शांत कर उस मासूम का सोचो,
कोमल मन में गहरा प्रभाव पड़ने से कोई तो बचा लो।।

वो छुई मुई का पौधा,हाथ लगते ही सहम जाता है,
सिकुड़ कर एक सीमित सीमा में बँध जाता है।
भयभीत हुआ चिर काल तक वापस खुल नहीं पाता,
शायद बढप्पन ही पौधे को हाथ लगने से बचा जाता है।।
-अर्शिता

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