मैं रुकी नहीं

मेरे शांतचित्त मन में तूफान सा आया,
हृदय की चौखट पर कोई दस्तक देने आया।
चौखट खोल,देख उन्हें मैं,खड़ी स्तब्ध रह गयी,
अँखियन की गहराई में डूबी सी रह गयी।।

चौखट से यूँ खिंचते हुए वे भीतर तो आए,
पर सीमा के अंदर मेरे नेत्र केवल उन्हें ही पाऐ।
क्योंकि मैं तो उनकी चौखट से दूर दिखाई,
नौका बिन चप्पू के दरिया के बीच ले आई।।

बिना चप्पू की नौका बहाव का सामना कैसे करे,
केवल बहाव में ढलकर उसी की दिशा में चले।
मेरी नौका के चप्पू से ये नदी पार करना छिन गया,
बहाव के विपरीत जाने का मेरा सपना कहीं छिप गया।

तुम प्रकाश की गति से मेरी ओर आए और चले भी गए,
पर मेरा मन कच्छप की गति से तुम्हारी ओर ही जाता गया।
अपने चप्पू की खोज में ये नौका बहाव के साथ बहती रही,
बहते- बहते जा एक विशाल पत्थर से वो टकरा वहीं रुकी रही।।

नज़रें घुमाईं तो एक बड़ा सा बाँस दिखाई पड़ा,
सहारे से उसके नौका ने बहाव का पहाड़ चढ़ा।
चल पड़ी वो अपने स्वप्न की ओर तेज़ गति से,
आखिर खोज ही लिया नया मार्ग अपनी मति से।।

-अर्शिता

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